Kisi Ke Liye Kitna Bhi Karo Shayari

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कुछ लोगो के लिए कुछ भी कर लो,
लकिन वो करंगे अपनी मन की ही।


किसी के लिए कुछ भी करो,
लकिन प्यार करंगे किसी गैर से।


करता हु तुझसे प्यार, करता हु तुझसे प्यार,
लेकिन क्यों तू इतना सताता है, करता हु तेरे लिए इतना कुछ,
मगर पता चला की किसी के लिए कितनी भी करो वो भाऊ नही देते है


जो पसंद ही नहीं करते आपको, भूल जाओ कभी सुधरेंगे,
वो आज भी ताने देते हैं, वो कल भी ताने देंगे।


किसी के लिए कितना भी करो सब एक दिन भूल जाना होता है,
तसली कर देख लेना ज़नाब,
इसी तरह का ये खुदगर्ज जमाना होता है।


किसी के लिए कितना भी करो शायरी

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बुराई के इसी जमाने में भले को कौनजानता है,
भले आदमी के कार्यो को अक्सर कौन पहचानता है।


मतलब होता तो तुम झट से नजदीक आ जाया करते थे,
मतलब निकला बस तुरन्त ही तुम भाग जाया करते थे।


किसी के लिए कितना भी करो वो बीच राहों में छोड़ ही जाता है,
ना जाना ऐसा वो क्यों करता है कोई पूछो उससे वो क्या चाहता है


एक वक्त था जब तेरी परवाह किया करता था,
अब तो तू मेरे खातिर फना भी हो जाए तो,
मुझे फर्क नहीं पड़ता


किसी के लिए कितना भी कर लो,
अंत में वो यही कहकर छोड़ देगा की,
आखिर तुमने मेरे लिए किया ही क्या है।


जिसे सर पर बैठाओ वो नाक में दम कर ही जाता है,
किसी के लिए कितना भी करो कम पड़ ही जाता है।


मेरे अलावा  किसी और को  अपना महबूब  बना कर देख,
लेतेरी हर धडकन तुझसे  ये खुद  कहेगी,
उसकी वफा  मे कुछ और  बात थी


अफ़सोस  होता  है  उस  पल  जब  अपनी पसंद  कोई  और  चुरा  लेता  है,
ख्वाब  हम  देखते  हैं  और  हक़ीक़त  कोई  और  बना  लेता  है


कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना,
वो क्या करे जिसे कोई उम्मीद ही नहीं


वो जो सबके सामने कभी जिक्र नहीं करता, 
अन्दर ही अन्दर बहुत फ़िक्र करता है।

kisi ke liye kitna bhi karo shayari

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घर से निकला हुआ हर शख्स आवारा नहीं होता, 
वो तो उसके हालात उसे भटकने पर मजबूर कर देते है।


वो याद करेंगे जिस दिन मेरी मोहब्बत को,
रोएगा बहुत फिर से मेरा होने के लिए


क्या पता था कि मोहब्बत ही हो जाएगी,
हमें तो बस तुम्हारा मुस्कुराना अच्छा लगा था


किसी के लिए कितना भी करो कम ही लगेगा,
क्योकि अब हर कोई हमदर्दी हो गया है।


बेफिजूल ही हमने उसके लिए इतना कुछ किया,
जो हमे कुछ भी नही समझता था।


अब मै सबसे दूरी बनाए रखता हूँ,
जिसे मेरी जरूरत होती है वो खुद मेरे करीब आ जाता है।


कुछ लोगो को हम कितना भी अपना बनाने की कोशिश क्यो ना कर लें,
आखिर मे वो साबित कर देते है की वो गैर ही है।


वो तुम्हे पीछे अकेला जरूर छोड़ जाते है,
जिनके लिए आज खुद को भूल जाते है।


कुछ भी कहो लेकिन इस बात मे कुछ तो दम है,
किसी के लिए कितना भी करो कम है।


कितना भी कर लो किसी के लिए,
एक ना एक दिन भूल ही जाते है लोग।

किसी के लिए कितना भी करो शायरी

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आप किसी के लिए कितना भी कर लो,
लोग अपनी औकात बताए बिना नही रह सकते।


किसी के लिए तुम कितना भी करो वो आपके लिए,
वही सोचेगा जो उसको सोचना है।


औरो से कोई तकलीफ़ नहीं,
यहां खुद से खुद की जंग है,
होठों पे झूठी मुस्कान और गम नजरबंद है।


शक्लो पर ना जाइये जनाब,
मासूमियत भी दगाबाज होती है।



जा जाकर धड़क उसके सीने में ऐ दिल,
हम उसके बिना जी रहे है तो तेरे बिना भी जी लेंगे


कैसे करूं मुकदमा उस पर उसकी बेवफाई का,
कमबख्त ये दिल भी उसी का वकील निकला


खुशियाँ तो कब की रूठ गयी हैं काश की,
इस ज़िन्दगी को भी किसी की नज़र लग जाये


बेवफा लोग बढ़ रहे हैं धीरे धीरे,
इक शहर अब इनका भी होना चाहिए


रुठुंगा अगर तुजसे तो इस कदर रुठुंगा की,
ये तेरीे आँखे मेरी एक झलक को तरसेंगी


किसी को न पाने से जिंदगी खत्म नहीं होती,
लेकिन किसी को पाकर खो देने से कुछ बाकी भी नहीं रहता

किसी के लिए कितना भी करो शायरी

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इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ,
ग़ैर तो ग़ैर हैं अपनों का सहारा न हुआ


किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया मैं,
मेरे नसीब में तुम भी नहीं खुदा भी नहीं


आँखों में तेरा चेहरा दिल में तेरी याद है,
तू ही मेरी आखिरी तू ही मेरी पहली फरियाद है।


हम भी कितने पागल है, जो प्यार की उम्मीद लगा बैठे है,
उस दीवाने से, जो अनजान है हमारी चाहत के फसाने से।


आपकी यादों को दिल से हम भूला नहीं सकते,
हम आपको सिवा किसी और को चाह नहीं सकते।


जिसने सच्चे मोहब्बत को इग्नोर कर दिया,
उसने अपने दामन में सिर्फ दर्द भर लिया।


इक बार नजरअंदाज करके देखो,
दुबारा तुम्हें नजर उठा कर भी नहीं देखेंगे


तुम क्या समझोगी कितनी सिद्दत से मैंने मोहब्बत की,
नजरअंदाज करके जिंदगी भर के लिए गम की सजा दी


पूरी दुनिया को वो नजरअंदाज करता है,
इस कदर वो पहले प्यार का आगाज करता है


ये जरूरी नहीं की जो रिश्ते हमारे लिए ख़ास है,
उनके लिए भी ख़ास हो जिनसे रिश्ते जुड़ें है


पागल नहीं थे हम जो तेरी हर बात मानते थे,
बस तेरी खुसी से ज्यादा कुछ अच्छा ही नहीं लगता था


मेरे दिल का दर्द किसने देखा, मुझे बस खुदा ने तड़फते देखा,
हम तन्हाई में बैठकर रोते है, लोगों ने हमें महफिलों में हँसते देखा है


तुम मुझसे दूर हो इसका शिकवा नहीं मुझको,
किसी और के करीब हो तुम बर्दास्त तो बस ये नहीं होता


आदत बदल सी गयी है वक़्त काटने की,
 हिम्मत ही नहीं होती अपना दर्द बाटने की


अगर कोई पसंद नहीं तो उसे बता दिया करो,
यूं नजरअंदाज करने से बस गलतफहमिया बढ़ती है


किसी को न पाने से जिंदगी खत्म नहीं होती लेकिन,
किसी को पाकर खो देने के बाद कुछ बाकी भी नहीं रहता


खुस रहना तो हमने भी सीख लिया था उनके बगैर,
मुद्द्त बाद उन्होंने हाल पूछ के बेहाल कर दिया


किसी ने मुझ से पूछा की पूरी जिंदगी क्या किया,
मैंने भी हंस कर कह दिया कि किसी को धोखा नहीं दिया